एक अधूरी मोहब्बत का इंतजार

एक अधूरी मोहब्बत का इंतजार
एक अधूरी मोहब्बत का इंतजार लेखिका: गुलबानो बेगम बारिश की हल्की बूंदें जैसे आसमान की आंखों से बरसती हुई दुआएं हों। वो सुबह भी कुछ वैसी ही थी — नमी भरी हवा, भीगे पेड़ और सड़क किनारे बहती चाय की खुशबू। उस गली में एक लड़का था — चायवाला। उम्र कोई खास नहीं, शायद 19 या 20 साल का। साधारण शक्ल, पर मासूम मुस्कान। उसका नाम लोग नहीं जानते थे, पर उसकी चाय के दीवाने हर रोज़ उस गली से गुज़रते थे। उस दिन भी वह रोज़ की तरह अपनी चाय की केतली सजाकर ग्राहकों के इंतज़ार में खड़ा था। तभी वो लड़की आई — सफेद सलवार-कमीज़, नीली दुपट्टा, और आंखों में शर्मीलापन। उसका चेहरा ढंका हुआ था, मगर उसकी आंखें बहुत कुछ कहती थीं। वो रोज़ उस चायवाले की दुकान के सामने से गुजरती थी, कभी रुकी नहीं, कभी कुछ कहा नहीं। लेकिन उसकी चाल धीमी हो जाती थी जब वो चायवाला सामने होता। चायवाले लड़के ने उसका नाम कभी नहीं पूछा, लेकिन दिल में एक नाम रख लिया था — "मोहब्बत"। हर सुबह जब वो लड़की वहां से गुजरती, लड़के की आंखों में चमक आ जाती। वो कप उठाने का अंदाज़, केतली की पकड़, सब कुछ बदल जाता। लड़की जानती थी कि कोई उसे देखता है। वो खुद भी चाहती थी कि कोई हो जो उसे बिना मांगे याद रखे, जो उसकी खामोशी को समझे। कई बार उसका मन हुआ कि वो चाय की दुकान पर रुके, एक कप चाय मांगे, कुछ बात करे। लेकिन समाज, संस्कार और डर ने उसे हमेशा चुप ही रखा। --- वक़्त बीतता गया दिन हफ्तों में बदले, हफ्ते महीनों में। अब दोनों के बीच एक खामोश रिश्ता बन गया था — कोई नाम नहीं, कोई वादा नहीं, लेकिन एहसास बहुत गहरा था। लड़की हर रोज़ कॉलेज जाती, चायवाले को देखती, और आगे बढ़ जाती। लड़का हर रोज़ उसी एक झलक के लिए जीता। उसने कभी मोहब्बत का इज़हार नहीं किया। वो जानता था कि शायद वो लड़की उसके लिए नहीं बनी। वो एक चायवाला था — जिसकी दुनिया उसकी केतली, स्टोव और दो किलो दूध तक सीमित थी। और वो एक पढ़ी-लिखी लड़की, जिसके सपनों में शायद कोई और ज़िंदगी थी। पर मोहब्बत कभी हैसियत नहीं देखती। वो बस दिल से निकलती है और खामोशी से किसी दिल में उतर जाती है। --- एक दिन का चमत्कार फिर एक दिन, कुछ ऐसा हुआ जो आज भी उस चायवाले की यादों में एक सुनहरी शाम की तरह जिंदा है। बारिश बहुत तेज़ थी। दुकानें बंद, सड़कें सुनसान। लड़का फिर भी अपनी केतली के साथ खड़ा था — शायद दिल में उम्मीद थी कि आज भी वो लड़की आएगी। वो सोच भी नहीं सकता था कि उस भीगते मौसम में कोई कॉलेज जाएगा, लेकिन उम्मीद तो दिल का सबसे बड़ा धोखेबाज़ होता है। और तभी, दूर से छाता पकड़े वो लड़की आती दिखी। वो रुकी। इस बार पहली बार। उसने लड़के से कहा — “एक चाय मिलेगी?” लड़का कुछ पल तो उसे देखता ही रह गया। फिर हड़बड़ाते हुए चाय बनानी शुरू की। हाथ कांप रहे थे, पर दिल मुस्कुरा रहा था। उसने सबसे स्वादिष्ट चाय बनाकर लड़की को दी। लड़की ने कप पकड़ा और खामोशी से एक घूंट लिया। “बहुत अच्छी है,” वो बोली, और मुस्कुराई। लड़के के लिए वो मुस्कान किसी ईनाम से कम नहीं थी। --- एक अधूरी मुलाकात उस दिन दोनों ने ज्यादा बात नहीं की। बस आंखों से बहुत कुछ कह दिया। लड़की चली गई, पर उसके जाते वक्त लड़के ने पहली बार उसका नाम पूछना चाहा… लेकिन आवाज़ गले में ही अटक गई। अगले दिन वो लड़की नहीं आई। फिर अगले दिन भी नहीं। हफ्ता बीत गया। महीना हो गया। चायवाले का चेहरा सूना हो गया। उसकी चाय में अब वही स्वाद नहीं था। उसकी आंखें अब हर रोज़ गली के मोड़ पर जाकर ठहर जातीं — शायद वो लौट आए। फिर एक बूढ़े आदमी से सुना कि उस लड़की की शादी तय हो गई थी। अब वो शहर ही छोड़ गई है। --- अब भी वो इंतज़ार करता है... सालों बीत गए। लड़का अब बड़ा हो गया है। उसकी दुकान अब ठेला नहीं, एक छोटी सी चाय की दुकान है — जिसमें लकड़ी की बेंचें हैं, कुछ अखबार, और एक कोने में वही पुरानी केतली। लेकिन हर साल बारिश के मौसम में, जब आसमान रोता है, वो चायवाला एक कप अलग से बनाता है। वो कप, उस लड़की के नाम होता है। वो जानता है, वो कभी वापस नहीं आएगी। वो जानता है, उसकी मोहब्बत अब किसी और की पत्नी होगी, किसी और की ज़िम्मेदारी। पर वो लड़का अब भी इंतज़ार करता है। क्योंकि उसके लिए मोहब्बत मतलब साथ पाना नहीं था… बल्कि बिना मिले भी किसी को उम्र भर चाहना था। --- कुछ मोहब्बतें मुकम्मल नहीं होतीं... पर सच्ची होती हैं।

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