
माँ – एक शब्द नहीं, संपूर्ण संसार
लेखिका: गुलबानो बेगम
जब हम “माँ” कहते हैं, तो वो केवल एक रिश्ता नहीं होता… वो एक भावना है, एक आसरा, एक ऐसी छांव जो जीवन भर सिर पर बनी रहती है। माँ – जो बिना कहे सब समझ लेती है, जो खुद भूखी रहकर हमें खिलाती है, जो हमारे रोने पर सबसे पहले बेचैन हो जाती है, और हँसी में सबसे पहले साथ हँसती है।
मैं आज जब यह लेख लिख रही हूँ, तो मेरी आंखों में पानी है और दिल में एक भारीपन। क्योंकि मेरी माँ अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनका एहसास, उनकी बातें, उनकी डांट और उनका आँचल आज भी मेरे साथ हैं।
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बचपन की गोद – सबसे सुरक्षित जगह
जब मैं छोटी थी, तब माँ की गोद ही मेरी दुनिया थी। वो थपकी देतीं और मैं तुरंत सो जाती। उनके आंचल में छुप जाना किसी डर से बचने जैसा लगता था — जैसे वो दुनिया की सारी परेशानियों से मुझे बचा लेंगी। मुझे आज भी याद है, जब मैं पहली बार स्कूल गई थी, कितना रोई थी… पर माँ ने आंखों में आंसू लिए मुस्कराकर कहा था — “जा बेटी, तुझे पढ़ना है, तुझे आगे बढ़ना है।”
वो खुद कभी स्कूल नहीं जा सकीं, लेकिन चाहती थीं कि मैं किताबों से दोस्ती करूं।
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माँ की रसोई – स्वाद और ममता का संगम
माँ की रसोई से जो खुशबू आती थी, वो अब दुनिया की किसी भी जगह से नहीं आती। उनके हाथ की रोटियां, खिचड़ी, वो सीधा-सरल खाना — बस अद्भुत था। न उसमें कोई बड़ी रेसिपी थी, न कोई महंगे मसाले, पर जो था वो था ममता।
मैं जब स्कूल से लौटती, माँ पहले से तैयार मिलतीं — “थक गई होगी, पहले खा ले, फिर होमवर्क कर लेना।”
आज जब थकी-हारी ऑफिस से लौटती हूँ, तो कोई नहीं पूछता — “खाना खाया या नहीं?”
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बीमार पड़ती तो माँ के स्पर्श से ही ठीक हो जाती
मुझे याद है, जब भी बुखार होता, माँ मेरा माथा सहलातीं, रात भर जागतीं, और कहतीं — “कुछ नहीं होगा मेरी बच्ची को।”
आज डॉक्टर की दवा से ठीक हो जाती हूँ, लेकिन वो सुकून नहीं मिलता जो माँ की हथेली से मिलता था।
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डांट में भी प्यार था
माँ की डांट कभी बुरी नहीं लगती थी। बचपन में अगर झूठ बोल दूँ, तो माँ गुस्सा करतीं, मगर शाम तक गले लगा लेतीं।
कई बार मैं सोचती, माँ इतनी जल्दी क्यों माफ कर देती हैं? अब समझ में आता है — माँ के पास दिल होता है, हिसाब नहीं।
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उनकी सादगी – मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा
माँ ने कभी मांग नहीं की। फटी साड़ी भी पहन ली, लेकिन मेरी फीस समय पर दी। खुद के लिए कभी कुछ नहीं खरीदा, लेकिन मेरे लिए दो-दो रिबन लाकर बोलीं — “ये वाला लाल वाला ज़्यादा अच्छा लगेगा ना?”
आज जब कपड़ों की अलमारी भरी पड़ी है, तब भी माँ की वो एक पुरानी साड़ी और उनकी वो मुस्कान सबसे सुंदर लगती है।
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अंतिम दिनों की वो खामोशी...
जब माँ बीमार पड़ीं, तो उन्होंने फिर भी शिकायत नहीं की। डॉक्टर ने कहा — “अब ज़्यादा समय नहीं है।”
पर माँ ने कहा — “मैं अपनी बेटी की शादी देखूंगी।”
वो मेरी शादी तो नहीं देख पाईं, पर उन्होंने मेरे लिए वो आशीर्वाद छोड़ दिए जो जीवन भर मेरे साथ चलेंगे। उनके जाने के बाद पहली बार मैंने जाना कि ‘खालीपन’ क्या होता है।
घर में सब कुछ था, पर माँ नहीं थीं।
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आज भी महसूस करती हूँ उन्हें…
आज जब रसोई में जाती हूँ, तो लगता है माँ की आवाज़ आएगी — “नमक ज़रा कम डालना।”
जब अकेले बैठी होती हूँ, तो उनकी थपकी महसूस होती है।
उनका जाना शारीरिक था, पर उनका रहना आत्मिक है।
माँ आज भी मेरे साथ हैं — हर सांस में, हर धड़कन में।
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माँ का मतलब सिर्फ जन्म देने वाली नहीं होता…
माँ वो है जो तुम्हें बिना शर्त चाहती है, जो तुम्हारे सपनों को खुद से बड़ा मानती है, जो तुम्हारे रोने से पहले ही जान जाती है कि तुम दुखी हो।
माँ वो है, जो कभी पीछे नहीं हटती — चाहे ज़िंदगी कितनी भी मुश्किल क्यों न हो।
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माँ जैसी कोई नहीं…
हम कितनी भी ऊंचाई पा लें, कितनी भी दौलत कमा लें — लेकिन माँ का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता।
दुनिया के हर रिश्ते में शर्तें होती हैं, पर माँ का रिश्ता शुद्ध, निस्वार्थ और अमर होता है।
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माँ के लिए कुछ पंक्तियाँ:
> वो जो चुपचाप मेरे दुख को समझ ले,
बिना कहे मेरी आंखें पढ़ ले,
जो थाली में सबसे अच्छा हिस्सा मुझे दे,
वो मेरी माँ ही हो सकती है।
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💠 अंतिम शब्द…
अगर आपकी माँ इस दुनिया में हैं, तो उन्हें रोज़ गले लगाइए, उनका हाथ थामिए, उन्हें बताइए कि आप उनसे कितना प्यार करते हैं। क्योंकि एक दिन जब वो नहीं होंगी, तब ये दुनिया बहुत सूनी लगेगी।
और अगर वो अब इस दुनिया में नहीं हैं, तो उन्हें हर दिन याद कीजिए — क्योंकि माँ को भुलाया नहीं जा सकता… माँ तो बस दिल में बसी होती हैं।
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